Teachers Salary in Bihar India : सुप्रीम कोर्ट ने पूछा था- चपरासी का वेतन टीचर से ज्यादा क्यों?अस्थाई शिक्षकों को समान वेतन दिया तो स्कूलों को बंद करना पड़ जाएगा - बिहार सरकार


लिहाजा राज्य सरकार इन शिक्षकों को समान कार्य के लिए समान वेतन देने में सक्षम नहीं है.राज्य सरकार ने कहा कि जिन लोगों की तुलना की जा रही है वो पुराने टाइम के कैडर शिक्षक है, इसलिए उनके साथ इनकी तुलना नहीं की जा सकती.

नई दिल्लीः बिहार के 3.7 लाख अस्थाई शिक्षकों के मामले में राज्य सरकार की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को भी सुनवाई जारी रहेगी.जस्टिस एएम सप्रे और जस्टिस यूयू ललित की पीठ में मंगलवार को बिहार सरकार की तरफ से वरिष्ठ वकील दिनेश द्विवेदी ने पक्ष रखना शुरू किया.वरिष्ठ वकील दिनेश द्विवेदी ने कहा कि राज्य सरकार आर्थिक पर सक्षम नहीं है कि इन शिक्षकों को समान कार्य के लिए समान वेतन दे सके.अगर इन शिक्षकों को समान कार्य के लिए समान वेतन दिया तो स्कूलों को बंद करना पड़ जाएगा.लिहाजा राज्य सरकार इन शिक्षकों को समान कार्य के लिए समान वेतन देने में सक्षम नहीं है.राज्य सरकार ने कहा कि जिन लोगों की तुलना की जा रही है वो पुराने टाइम के कैडर शिक्षक है, इसलिए उनके साथ इनकी तुलना नहीं की जा सकती.राज्य सरकार की ओर से कल भी मामले में बहस जारी रहेगी.
"राज्य सरकार आर्थिक तौर सक्षम नहीं"
बिहार सरकार के वकील दिनेश द्विवेदी ने कहा कि राज्य सरकार आर्थिक तौर सक्षम नहीं है कि इन शिक्षकों को समान वेतन दे.राज्य सरकार ने कहा कि 1981 में जिन शिक्षकों की नियुक्ति शिक्षा विभाग की ओर से की गई थी उनकी तुलना 2006 के इन अस्थाई शिक्षकों से नहीं की जा सकती. वहीं सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार से पूछा कि इन स्कूलों को कौन चलाता है, स्कूलों को चलाने का जिम्मा राज्य सरकार के पास है? राज्य सरकार ने कोर्ट को बताया कि ये पंचायत स्कूल है, इन्हें पंचायत चलाती है.सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मतलब है कि राज्य सरकार ने इन स्कूलों को चलाने का जिम्मा लोकल बॉडी को दे रखा है.
पिछली सुनवाई में बिहार सरकार को केंद्र का मिला था समर्थन
दरअसल, पिछली सुनवाई में केंद्र सरकार ने बिहार सरकार का समर्थन करते हुए समान कार्य के लिए समान वेतन का विरोध किया था. कोर्ट में केंद्र सरकार ने बिहार सरकार के स्टैंड का समर्थन किया था.केंद्र सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दायर 36 पन्नों के हलफनामे में कहा गया था कि इन अस्थाई शिक्षकों को समान कार्य के लिए समान वेतन नहीं दियाजा सकता क्योंकि समान कार्य के लिए समान वेतन के कैटेगरी में ये अस्थाई शिक्षक नहीं आते.ऐसे में इन अस्थाई शिक्षकों को नियमित शिक्षकों की तर्ज पर समान कार्य के लिए समान वेतन अगर दिया भी जाता है तो सरकार पर प्रति वर्ष करीब 36998 करोड़ का अतिरिक्त भार आएगा. केंद्र ने इसके पीछे यह तर्क दिया था कि बिहार के अस्थाई शिक्षकों को इसलिए लाभ नहीं दिया जा सकता क्योंकि बिहार के बाद अन्य राज्यों की ओर से भी इसी तरह की मांग उठने लगेगी.  
सुप्रीम कोर्ट ने पूछा था- चपरासी का वेतन टीचर से ज्यादा क्यों?
अस्थाई शिक्षकों को समान काम समान वेतन मामले में पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा था जब चपरासी को 36 हजार रुपए वेतन दे रहे हैं, तो फिर छात्रों का भविष्य बनाने वाले शिक्षकों को मात्र 26 हजार ही क्यों? इसके पहले 29 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाईकोर्ट फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर राज्य सरकार को झटका दिया था.कोर्ट ने तब सरकार को यह बताने के लिए कहा था कि अस्थाई शिक्षकों को सरकार कितना वेतन दे सकती है? इसके लिए लिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय कमेटी तय कर बताए 
क्या है पूरा मामला? 
दरअसल, बिहार में करीब 3.7 लाख अस्थाई शिक्षक काम कर रहे हैं। शिक्षकों के वेतन का 70 फीसदी पैसा केंद्र सरकार और 30 फीसदी पैसा राज्य सरकार देती है.वर्तमान में अस्थाई शिक्षकों (ट्रेंड) को 20-25 हजार रुपए वेतन मिलता है.अगर समान कार्य के बदले समान वेतन की मांग मान ली जाती है तो शिक्षकों का वेतन 35-44 हजार रुपए हो जाएगा. 
   - सुमित कुमार