अवधारणा
|
वस्तुतः गांवों और ग्रामीण इलाकों में निवास करने वाले व्यक्ति को ही अपने परिवेष की आवश्यकता एवं समस्या को समझने की सूझ- बूझ होती है। जनपदीय/ प्रादेषिक/ राष्ट्रीय स्तर के योजना विन्यासकारों को ग्रामीण क्षेत्रों की आवष्यकताओं, समस्याओं एवं इनकी प्राथमिकताओं के विषय में विषेष जानकारी नहीं होती है। अतएव ग्रामीण वासियों द्वारा ही अपनी उन्नति विषयक योजना प्रारूप बनाया जाना अपेक्षित है एवं इनके द्वारा बनाये गये योजना प्रारूप ही जनपदीय/ प्रादेषिक/ राष्ट्रीय स्तर के प्राधिकारियों को प्रेषित किया जाना चाहिये। इन्हीं योजना प्रारूपों के आधार पर ब्लाक/ जनपद/ प्रदेष स्तर की योजना बनायी जानी चाहिये। योजना बनाने की यह प्रणाली विकेन्द्रीयकृत नियोजन के नाम से जानी जाती है। अतः ग्रामीण स्तर की योजना हेतु प्रत्येक कुटुम्ब के आंकड़े एकत्रित किये जाते हैं। |
आवश्यकता
|
वस्तुतः ग्रामवासी ही अपने गाँव की आवश्यकतानुसार समस्या को समझते हुये इसी के अनुकूल समस्याओं की प्रतिपूर्ति हेतु क्रियान्वयन योग्य प्रणाली का परामर्श दे सकते हैं। इसके दो लाभ है - प्रथमतः स्वयं द्वारा बनायी गयी योजनाओं - परियोजनाओं से भावात्मक लगाव के कारण ग्रामीणजन इनके प्रति अधिक ग्रहणशील होते हैं द्वितीयतः इनके क्रियान्वयन में इन ग्रामीण जनों का सक्रिय सहयोग एवं प्रतिभागिता भी प्राप्त होती है। सर्वेक्षण से स्पष्ट है कि ग्रामीण वासी गांव की छोटी - छोटी आवश्यकताओंऔर समस्याओं को समझते हुये गांव में क्रियान्वित की जाने वाली षिक्षा प्रणाली एवं तदनुसार बच्चों के पंजीयन आदि पर निःसंकोच चर्चा करते हैं , और इसके साथ सूक्ष्म नियोजन में भी उनकी भागीदारी प्राप्त होती है। |
सुव्यवस्था प्रणाली
|
ग्राम शिक्षा समिति के सदस्यों ( वी0 ई0 सी0) के साथ गाँव के नवयुवकों, अध्यापकों स्थानीय गैर सरकारी संस्थाओं यथा - नेहरू युवक केन्द्र, युवक मंगल दल एवं अन्य के साथ बैठक किये जाने पर छोटी/ बड़ी समस्याओं/ आवश्यकताओंएवं प्राथमिकताओं पर विचार- विमर्श हो जाता है। |
परिवार सर्वेक्षण के सोपान
|
- वीईसी सदस्य द्वारा ग्रामीण षिक्षा पंजी ( बाल गणना पंजी) पर सूचनाओं का एकत्रीकरण।
- ग्रामीण विद्यालयों हेतु बच्चों के शत- प्रतिषत पंजीयन की योजना बनना।
- ग्रामीण शिक्षा व्यवस्था में गांव के प्रत्येक बालक/ बालिका की सहभागिता।
|
परिवार सर्वेक्षण के परिणाम
|
- विद्यालय जाने वाले बालक/ बालिकाओं की संख्या।
- विद्यालय न जाने वाले बालक/ बालिकाओं की संख्या।
- विविध सामाजिक संगठनों के बच्चों की संख्या।
- बोर्ड विद्यालय/ मान्यता प्राप्त विद्यालय/ वैकल्पिक विद्यालय/ ईसीसीई केन्द्र जाने वाले बालक/ बालिकाओं की संख्या।
- ऐसे परिवारों, जिनके बच्चे विद्यालय नहीं जा रहे हैं की संख्या।
- असमर्थता / विकलांगता से प्रभावित बच्चों की संख्या।
|
ग्रामीण क्षेत्रों की शैक्षिक एवं अन्य समस्याओं / आवश्यकताओंकी प्रमाणिकता
|
ग्राम वासी एक स्थान पर एकत्रित होकर गाँव की छोटी/ बड़ी समस्याओं एवं आवश्यकताओंकी सूची तैयार कर, न्यूनतम 5 आवष्यकताओं/ समस्याओं का समाधान लिखकर देते हैं। |
|
परिवार सर्वेक्षण
|
अध्यापकों, ग्रामीण शिक्षा समिति सदस्यों एवं ग्रामीण युवकों के निर्मित राय द्वारा गांव के प्रत्येक परिवार सम्बन्धी पूर्ण सूचनायें एकत्रित की जाती हैं। ये सूचनायें रिक्त प्रारूप के फार्म पर एकत्रित की जाती हैं। सर्वेक्षण के बाद सभी भरे हुए फार्म एकत्रित कर लिये जाते हैं। इस सर्वेक्षण का उद्देष्य ग्रामीण जनों हेतु षिक्षा की आवश्यकताएवं ग्रामीण शिक्षा व्यवस्था हेतु ग्रामीणों को जागरूक करना है। इस सर्वेक्षण में विद्यालय प्रवेष से रहित बच्चों को भी चिन्हित किया जाता है। |
सूचना विश्लेषण
|
ग्राम शिक्षा समिति द्वारा प्रत्येक परिवार के सर्वेक्षण एवं विद्यालय मानचित्रीकरण द्वारा एकत्रित सूचनाओं के विष्लेषण से ग्रामीण जन ग्राम्य षिक्षा व्यवस्था की वास्तविकताओं के प्रति जागरूक होते हैं। |
सूचनाओं का संग्रहण
|
गांव पंचायत, ब्लाक, जनपद एवं प्रदेष स्तर पर एच एच एस के माध्यम से उपलब्ध करायी गयी सूचनाओं के सांख्यिकी विष्लेषण के बाद ये सूचनायें उपरोक्त विविध स्तरों से पारित होती हुयी राज्य स्तर पर संप्रेषित कर दी जाती हैं। |