इन दिनों पूरा विश्व कोरोना वायरस रोग त्रासदी से ग्रस्त है । चाइना से इस वायरस ने चाइना सहित इटली, स्पेन, कोरिया, और कई देशों में अपना प्रकोप फैला दिया है । सरकारें लॉकडाउन कर रही हैं । सभी ओफिस, स्कूल कालेज बंद कर दिए गये हैं । यातायात सेवाएँ ठप कर दी गयी हैं । विश्व के विकसित देश जहाँ पर व उन्नत चिकित्सकीय साधन उपलब्ध हैं , और वहाँ की जनता मेडकल टर्म्स को भली प्रकार समझती है ।

कोरोना त्रासदी पर वैश्विक सरकारों की रेश के मुक़ाबले भारत के कड़े कदम कितने असरदार ? गोमूत्र व गोबर स्नान वाली पार्टी के क्रेज़ से बचें - सुधांशु श्रीवास्तव 

जब वहाँ पर कोरोना से हज़ारों मौतें हो चुकी हैं फिर भारत में क्या हाल होगा ? जहां पर लोग गोमूत्र व गोबर स्नान से कोरोना के इलाज का ढोल पीट रहे हैं ।स्वास्थ्य विभाग की सलाह इग्नोर कर गोमूत्र व गोबर स्नान की बात करने वाले कहीं भारत को चाइना व इटली न बना दें - सुधांशु श्रीवास्तव
भारत सरकार द्वारा जारी की गयी एडवाइज़री को छोड़ जहां पर बर्तन व थाली बजाकर कोरोना वायरस को मारने की बात रहे हैं । हम अभी न चेते तो भारत को चाइना इटली बनते देर न लगेगी । भारत में  जनता कर्फ़्यू, लाक डाउन की शुरुआत है । सरकार को कोरोना त्रासदी पर विश्व के अन्य सरकारों की भाँति और भी कड़े कदम उठाने पर चाहिए । ताकि कहीं ऐसा ना हो कि लोग कोरोना से तो बचा जाएँ और बेरोज़गारी और भुखमरी के चपेट में आ जाएँ ।
कोरोना वायरस के प्रकोप से आम जान मानस को जागरूक रहने की ज़रूरत है । स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी सलाह का पालन करें । बोलो गुरुजी के इस आलेख में इसे हल्के लेना और स्वयं को हीरो साबित करना सेहत के लिए हानिकारक है ।ताली और थाली बजाने के अलावा भारत को भी वैश्विक देशों की सरकारों के जैसे पेश आने की ज़रूरत सुधांशु श्रीवास्तव

कोरोना त्रासदी पर वैश्विक सरकारों की रेश के मुक़ाबले भारत के कड़े कदम कितने असरदार ? गोमूत्र व गोबर स्नान वाली पार्टी के क्रेज़ से बचें - सुधांशु श्रीवास्तव

कोरोना वायरस प्रकोप का इपीसेन्टर फिलहाल अपेक्षाकृत कम जनसंख्या घनत्व वाला यूरोपीय प्रदेश है जहाँ लोगों के जीवन स्तर में आधारीय चीजें शामिल हैं जिनमे कम घनत्व वाली बस्तियाँ, पेय जल की घर तक पहुंच, हाइजीनिक शौचालय और सम्वेदन शील सरकार के साथ ही पढ़ी-लिखी और जागरूक जनसंख्या है।

स्वास्थ्य विभाग की सलाह इग्नोर कर गोमूत्र व गोबर स्नान की बात करने वाले कहीं भारत को चाइना व इटली न बना दें 

                इसके विपरीत भारत जैसी विशाल जनसंख्या वाला देश जिसके ज़्यादातर क्षेत्र अधिक जनसंख्या घनत्व और पर्याप्त गंदगी से व्याप्त हैं और अधिसंख्यक लोगों का मानसिक स्तर भी गाय-गौमूत्र-गोबर तक सीमित है, में अभी इस वायरस के प्रभाव के शुरुआती प्रमाण मिलने लग गए हैं जो आने वाले समय मे बहुत अलार्मिंग स्थिति पैदा कर सकते हैं। झुग्गियों वाले अधिकतर क्षेत्रों में पानी की निर्भरता उस नल पर होती है जिसमे सुबह से बाल्टियों की लाइन लगा दी जाती है और लोग भीड़ में खड़े होकर आपूर्ति के चालू होने का इंतज़ार करते हैं।पूर्व के अनुभवों के आधार पर कह सकता हूँ कि यह वो देश है जहां सरकारें अपनी राजनीतिक गुणा-गणित में जुटी रहती हैं और लोगों में पारस्परिक संवेदना का स्तर अपने सबसे नीचले स्तर पर होता है।

अधिसंख्यक लोग ऐसे हैं जो बजाय मेडिकल फैसिलटीज़ पर चिंता करने के मानसिक दिवालियापन की मिसालें पेश करते हुए गौमूत्र पार्टी करके 'कोरोना शांत हो जाओ" टाइप की मूर्खतापूर्ण बातें करते है और उनको चीयर भी किया जाता है।हॉस्पिटल्स और मेडिकल फैसिलिटीज़ को छोड़कर मंत्रोच्चार और मंदिर-मस्जिद में डूबी जनता को नित नए झुनझुने पकड़ाए जाते हैं और वो दिन पर दिन मानसिक दिवालियेपन के और अधिक शिकार होते जाते हैं।वायरस का संक्रमण इंसान द्वारा ही संचारित हो रहा है और इसका वाहक यदि मूर्खतापूर्ण बातें और तर्क करने वाला वह भारतीय नागरिक हो जो गौमूत्र की विशिष्टता और मंत्रोच्चार में डूबा हुआ हो तो किसी भी सरकार को ऐसी विषम परिस्थिति में आत्ममुग्धता से बाहर आकर अपने लोगों के प्रति अति संवेदनशील हो जाना चाहिए।

प्रधानमंत्री जी ने कनाडाई प्रधानमंत्री के नक्शेकदम पर चलते हुए जनता से दो अपीलें कीं ,एक तो यह कि लोग अपने ही घर मे रहें और सुरक्षित रहें दूसरा कि उन सभी कर्मियों का उत्साहवर्धन  और सम्मान किया जाए जो ज़मीन पर रहकर कोरोना इफ़ेक्ट को कम करने के लिए लगातार काम कर रहे हैं।

लेकिन प्रधानमंत्री जी ने कनाडाई प्रधानमंत्री की तरह ही आगे बढ़कर उन बातों या योजनाओं का जिक्र नही किया जिनसे राष्ट्र को इस कठिन समय मे सांत्वना मिलती, ऐसे कठिन समय मे जनता की आर्थिक समस्याओं और भय को समझा गया होता।दिहाड़ी मजदूरी करने वाले, रोज कमाकर अपना परिवार चलाने वाले लोग कोरोना की चिंता से ज्यादा परिवार के भरण-पोषण की चिंता से ग्रस्त हैं।

भले ही प्रधानमंत्री जी लोगों से यह अपील करें कि किसी कामगार का वेतन न रोका जाए लेकिन यह अपील ज़मीन में कतई काम नही करने वाली।उद्योगों में समायोजित असंगठित कामगार तबके को उनका मालिक वेतन दे भी कैसे सकता है जबकि प्रोडक्शन और वितरण दोनों ही बंद हों?अगर आधारीय आवश्यकताओं के बारे में ठोस रणनीतियां न बनाई गईं तो कोरोना से ज्यादा बड़ा ख़तरा लोगों को ख़ुद को और अपने परिवार को जीवित रखने के प्रयास से उतपन्न हो जाएगा।

 केरल के मुख्यमंत्री द्वारा जनता के सहयोग के लिए आर्थिक पैकेजेस की घोषणाएं की गईं और पड़ोसी देश श्रीलंका में भी इस आपात स्थिति से निपटने के लिए आर्थिक योजनाओं का त्वरित और नवीन प्रयोग शुरू किया गया।इन सबके मूल में कहीं न कहीं भविष्यगत उन तैयारियों को शामिल किया गया है जिनसे सामाजिक समस्या उत्पन्न हो जाने की सम्भवानाये हैं।अभी हाल में ही टीवी और सोशल मीडिया में विकसित देशों की वो तस्वीरें भी दिखी हैं जिनमे घरेलू सामग्री की प्राप्ति को लेकर आपसी लूटमार मची हुई थी।

भारत जैसे विशाल और चिकित्सीय सेवाओं में अति पिछड़े देश में यदि आम जनता द्वारा स्वयं को आइसोलेट न किया गया तो भारत मे कोरोना सम्बन्धी सुनामी की अति सम्भावना है और इस सम्बंध में डॉक्टर रामनन लक्ष्मीनरायण (Director of centre for disease dynamics,economy and policy) ने बीबीसी के जरिये यह चेतावनी जारी की है कि भारत मे 30 करोड़ से भी अधिक लोगों के प्रभावित हो जाने की संभावना बनेगी जिसमे से 50 से 60 लाख लोगों को एक साथ और त्वरित चिकित्सा सेवाओं की आवश्यकता पड़ेगी।अब ऐसे में आप स्वयं ही कल्पना करें कि राजनीतिक लाभ दृष्टि की विचारधारा को ऐसे समय मे भी न छोड़ने वाले राजनीतिक बुद्धिजीवियों द्वारा चिकित्सीय सेवाओं के बारे में अब तक कोई ठोस पहल तक न की गई हो तो हालात कितने ख़राब होने वाले हैं?
         
            भयभीत जनमानस यूं भी अपने घरों तक सीमित होने की मनोदशा में था ही और इटली में जिस तरह से हर शाम लोग अपनी बालकनियों में खड़े होकर गाने गाकर और हर्सोल्लास का माहौल बनाकर लोगों में यह संदेश प्रसारित करते हैं कि 'हम सब साथ हैं' , उस वीडियो को भी लोगों ने देख ही रखा था।

              देश और सरकार का प्रमुख होने के नाते देशवासियों के प्रति सरकार क्या कर रही है और भविष्यगत क्या योजनाएं हैं, इस विषय पर भी बात की जानी चाहिए थी क्योंकि भारत सहित उपमहाद्वीप में जनसंख्या, जनसंख्या का अपेक्षाकृत अधिक घनत्व,मलिन और घनी बस्तियाँ, आधारीय सुविधाओं का नितांत अभाव , चिकित्सीय सुविधाओं का पिछड़ापन आदि मिलकर इस विश्वव्यापी समस्या का सबसे क्रूर रूप भारतीय उपमहाद्वीप में दिखा सकता है और उसमें भी सबसे ज्यादा प्रभाव ख़ुद भारत देश मे दिखाई पड़ सकता है। शासन-प्रशासन को ठोस और गंभीर निर्णय त्वरित रूप से लेते हुए आम जनता को न केवल कोरोना सम्बन्धी दहशत से बाहर लाना होगा बल्कि जीवन यापन और आर्थिक परेशानी उतपन्न हो जाने की दहशत से भी।

कुछ बातों पर आवश्यक रूप से ध्यान दिया जाना चाहिए।यद्यपि ज़्यादातर सावधानियों का ज़िक्र लगातार मीडिया और सोशल मीडिया के ज़रिए होता आया है लेकिन जिन बातों को अभी तक मैंने कहीं पर लिखा हुआ नही देखा है,अपने स्वज्ञान के आधार पर उन्हें जोड़ना चाहता हूँ।

                  वायरस स्वतः चालन नही कर सकता, हवा में पानी की बून्दों के रूप में किसी की छींक से निकलकर आया वायरस जब कोई अन्य व्यक्ति अपनी श्वसन प्रक्रिया के दौरान अपने अंदर खींचता है तो यह एक से दूसरे व्यक्ति में ट्रांसमिट हो जाता है।इस तरह एक चेन रिएक्शन बनता चला जाता है।ऐसे इन्फेक्टेड व्यक्ति जब किसी पब्लिक ट्रांसपोर्ट माध्यम से सफर कर रहे हों तो वह अपने आस-पास के व्यक्तियों को संक्रमित करते हैं और वो आस-पास वाले व्यक्ति भी अपने आस-पास के व्यक्तियों को।

                    इसे एक उदाहरण से समझते हैं।मानिए कि कानपुर से एक बारात फतेहपुर जानी है।दूरी बमुश्किल 75-80 किमी।दूल्हे के दो जीजा,एक सूरत से आकर शामिल हुए और दूसरे मुंबई से आकर।अभी तक सबकुछ सही है और दिख भी सही रहा है। मुंबई वाले जीजा अपनी ट्रेन यात्रा के दौरान किसी इन्फेक्टेड के आस-पास वाले हो चुके थे।कानपुर पहुंचकर उन्होंने न केवल अपनी ससुराल के संबंधियों को,पड़ोसियों को और बिल्हौर से आये हुए हलुवाई और उसके साथियों को भी यह इंफेक्शन बाँट दिया।अभी भी सबकुछ ठीक दिख रहा है।अब बारात चली तो दूल्हे के कुछ दोस्त भी बस में चढ़े जो पालीटेक्निक के समय के दूल्हे के साथी हैं और उत्तर-प्रदेश के विभिन्न जिलों से आये हुए थे।बारात की बस डेढ़ से दो घण्टे में जनवासे पर पहुंच गई।इसके बाद इन सारे बारातियों ने अनजाने ही फतेहपुरिया लोगों और ससुराल के सम्बन्धियों में यह इंफेक्शन बांटना शुरू कर दिया।शादी-ब्याह में दूर-दराज़ के रिश्तेदार आकर ठहरते हैं और विदाई के तुरंत बाद ही उनकी वापसी भी शुरू हो जाती है।

                      विदाई के बाद सब अपने अपने घरों को लौटे और वह भी 'यात्रा करके'। अब आप 14 दिन बाद की स्थिति सोचिए जब ये सारे इन्फेक्टेड लोग एक्यूबेशन पीरियड गुज़ार चुके होंगे।अगर मुम्बई वाले जीजा किसी औचक काम के कारण शादी में शामिल होने के लिए मुंबई से निकलते ही न? तो यह चेन रिएक्शन बनता ही नही और 14 दिन बाद की तस्वीर की भयावहता भी हमे डराती नही।

                        दूसरी बात यह कि चूंकि वायरस स्वतः चालन नही कर सकता इसलिए किसी की छींक से कपड़ों पर आया हुआ वायरस या वायरस समूह यथास्थिति में ही बना रहेगा जब तक कि उसे गंतव्य तक पहुंचने का वाहन न उपलब्ध कराया जाए।ऐसे केस में वाहन की भूमिका में हम ख़ुद ही होंगे जब अपने हाथों से ऐसे इन्फेक्टेड कपड़े को छूने के बाद हम अपना मुंह ,नाक,आँख या कोई भी ऐसी जगह या अंग टच करें जो शरीर के अंदर पहुंचने का मार्ग हो सकता हो। शरीर के घाव वाले या तात्कालिक रूप से कटे-छिले भाग भी इनके शरीर के अंदर जाने का मार्ग हो सकते हैं।बाहरी दुनिया मे निष्क्रिय यह वायरस शरीर के अंदर जाते ही एक्टिव मॉड में आ जाता है और ख़ुद की जनसंख्या को तेजी से बढाने लग जाता है।शरीर के अंदर इसके प्रवेश के साथ ही हमारा इम्यून सिस्टम इस वायरस के लिए अपनी फ़ौज तैनात करना शुरू करता है।इस अंदरूनी लड़ाई में जो जीतेगा वही राज करेगा इसलिए बेहतर इम्यूनिटी ही जीत के लिए लड़ पाएगी अन्यथा की स्थिति में इस वायरस की जनसंख्या और संक्रमण बढ़ता जाएगा और धीरे-धीरे इसका प्रभाव भी दिखना शुरू हो जाएगा।

                      इसलिए बचाव का प्राथमिक और सबसे सटीक तरीका यह है कि इस वायरस को शरीर के अंदर प्रवेश ही न करने दिया जाए।यही कारण है कि लोगों को इन्फेक्टेड लोगों से दूर रहने की सलाह दी जा रही है और आइसोलेशन को सबसे कारगर हथियार के रूप में देखा जा रहा है।आइसोलेशन की प्रक्रिया वास्तव में उस चेन रिएक्शन की कड़ी को तोड़ने की प्रक्रिया है जिसकी बात ऊपर की गई है।अगर यह कड़ी टूट जाये और इन्फेक्टेड लोगों का सटीकता से चिन्हांकन करते हुए उनका सफलता के साथ इलाज़ किया जाए तो यह समस्या जड़ से समाप्त हो सकती है।भारत देश की विशालता और विशाल जनसंख्या और उच्च जनसंख्या घनत्व के चलते सबसे पहले यह ज़रूरी है कि लोग ख़ुद ही इनीशिएटिव लें क्योंकि कोई भी सरकार एक-एक व्यक्ति को पर्सनली ट्रीट नही कर सकती और यदि कर भी पाए तो उतना समय ही नही है।

लेखक -सुधांशु श्रीवास्तव