69000 up teacher में विवाद की जड़ एक ही सवाल के अलग अलग जवाब
एक परीक्षा संस्था, एक ही प्रश्न और जवाब अलग-अलग। यह सुनकर अजीब लग सकता है लेकिन सच है। और इसका खामियाजा लाखों अभ्यर्थी भुगत रहे हैं। परिषदीय प्राथमिक स्कूलों में 69 हजार सहायक अध्यापक भर्ती में परीक्षा नियामक प्राधिकारी के विषय विशेषज्ञों ने प्रश्नों का ऐसा विवाद पैदा किया कि हाईकोर्ट को यूजीसी के पैनल से आपत्तियों के निस्तारण का आदेश करना पड़ा। 6 जनवरी 2019 को हुई शिक्षक भर्ती परीक्षा में एक प्रश्न का जवाब कुछ और जबकि इसी संस्था की ओर से सालभर बाद 8 जनवरी 2020 को आयोजित टीईटी 2019 में कुछ और था। सहायक अध्यापक परीक्षा की बुकलेट सीरीज डी के प्रश्न संख्या 137 -'पढ़ने लिखने की अक्षमता है' का जवाब विषय विशेषज्ञों ने 'डिस्लेक्सिया' माना है। जबकि टीईटी 2019 की बुकलेट सीरीज डी के प्रश्न संख्या 2-'डिस्लेक्सिया से यह करने में कठिनाई होती है?' का जवाब एक्सपर्ट कमेटी ने 'पढ़ने/वर्तनी में' को माना है। प्रमाणित पुस्तकों में डिस्लेक्सिया पढ़ने की अक्षमता से जुड़ा है। लिखने की अक्षमता को डिस्पाइरेक्सिया कहा जाता है। अभ्यर्थियों ने हाईकोर्ट में इस प्रश्न को भी चुनौती दी है। चार विवादित प्रश्नों में से एक अन्य पर परीक्षा नियामक प्राधिकारी और लोक सेवा आयोग के विषय विशेषज्ञों के मत अलग हैं।

बुकलेट सीरीज डी के प्रश्न संख्या 131-'भारतीय संविधान सभा के अध्यक्ष कौन थे?' इसका जवाब परीक्षा नियामक प्राधिकारी के एक्सपर्ट पैनल ने 'डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा' सही माना है। जबकि पीसीएस-जे 2011 परीक्षा में पूछे गए इसी प्रश्न का उत्तर लोक सेवा आयोग के विषय विशेषज्ञों ने 'डॉ. राजेन्द्र प्रसाद' को माना है। आयोग ने जो चार विकल्प दिए थे उनमें डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा का नाम तक नहीं था। एनसीईआरटी की किताबों और घटनाचक्र में स्पष्ट लिखा है अस्थायी अध्यक्ष डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा थे। जबकि प्रथम स्थायी अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद थे। लोकसभा की वेबसाइट पर भी डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को ही अध्यक्ष बताया जा रहा है।


प्रश्नपत्र बनाने का काम विषय विशेषज्ञों का है। आपत्तियों का निस्तारण भी उनकी कमेटी करती है। हमें परीक्षा के बाद पता चलता है कि कौन-कौन से प्रश्न थे। प्रश्नपत्र में गड़बड़ी मिलने पर विषय विशेषज्ञों को पैनल से बाहर भी किया जाता है। अनिल भूषण चतुर्वेदी, सचिव परीक्षा नियामक प्राधिकारी

ऐसी स्थिति में या तो सभी अभ्यर्थियों को एकसमान रूप से अंक देने चाहिए या फिर ऐसे प्रश्नों को हटाकर मेरिट बनानी चाहिए। यदि एक ही प्रश्न के दो अलग-अलग उत्तर हैं तो ऐसे विषय विशेषज्ञों को पैनल से बाहर करना चाहिए। प्रो. धनंजय यादव, अध्यक्ष शिक्षाशास्त्र विभाग इविवि